सम्राट ललितादित्य

|| ॐ जय श्रीराम ||


#सम्राट_ललितादित्य:


एक ऐसा महान राजा जिसके बारे में इतिहास में पढ़ाया ही नहीं गया
इतिहास का बड़ा ही रोचक तथ्य है ये कि विदेशों ने अपने क्रूर, निर्भय और आक्रांता स्वभावी शासकों को भी अपनी धरोहर मानकर उन्हें 'विश्व-धरोहर के रूप में इतिहास में स्थान दिलाया है, और हमने अपने पात्र लोगों को भी या बहुत ही मानवीय और राष्ट्रभक्त लोगों को भी इस पात्रता सूची से पीछे हटा लिया है।


सम्राट ललितादित्य हमारे लिए एक ऐसा ही नाम है जो सिकंदर से अधिक महान और पराक्रमी शासक थे। नरेन्द्र सहगल अपनी पुस्तक 'धर्मान्तरित कश्मीर में लिखते हैं:-'ललितादित्य ने पंजाब, कन्नौज, बदखशां और पीकिंग को जीता और 12 वर्ष के पश्चात कश्मीर लौटा। ललितादित्य जब अपनी सेना के साथ पंजाब कूच कर निकले तो पंजाब की जनता ने उनके स्वागत में पलक पावड़े बिछा दिये।ललितादित्य ने अपने सैन्य अभियानों से बंगाल बिहार, उड़ीसा, तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। यह सैनिक कूच गुजरात, मालवा और मेवाड़ तक सफलतापूर्वक आगे ही आगे बढ़ता गया। ललितादित्य के इन सफल युद्घ अभियानों के कारण भारत ही नही समूचे विश्व में कश्मीर की धरती के पराक्रमी पुत्रों का नाम यशस्वी हुआ।


मुस्लिम इतिहासकार बामजई ने भी इस हिंदू शासक को 'दयालु विजेता कहकर महिमा मंडित किया है। जबकि इतिहासकार मजूमदार हमें बताते हैं--भारत से चीन तक के कारवां मार्गों को नियंत्रित करने वाली कराकोरम पर्वत श्रंखला के सबसे अगले स्थल तक उनका साम्राज्य फैला था। आठवीं सदी के आरंभ से अरबों का आक्रमण काबुल घाटी को चुनौती दे रहा था। इसी समय सिन्ध की मुस्लिम शक्ति उत्तर की ओर बढ़ने के प्रयास कर रही थी। जिस समय काबुल और गांधार का शाही साम्राज्य इन आक्रमणों में व्यस्त था, ललितादित्य के लिए उत्तर दिशा में पांव जमाने का एक सुंदर अवसर था। अपनी विजयी सेना के साथ वह दर्द देश अर्थात दर्दिस्तान से तुर्किस्थान की ओर बढ़े। असंख्य कश्मीरी भिक्षुओं तथा मध्य एशियाई नगरों के कश्मीरी लोगों के प्रयासों के फलस्वरूप पूरा क्षेत्र कश्मीरी परंपराओं तथा शिक्षा से समृद्घ था। अत: यह समझना कठिन नही है कि ललितादित्य के मार्गदर्शन में कश्मीरी सेना ने वहां सरलता से विजय प्राप्त कर ली। टैंग शासन की समाप्ति तथा भीतरी असैनिक युद्घों के कारण जिन चीनी साम्राज्य के अधीन वे आये थे वह पहले ही खण्ड खण्ड हो रहा था।


-आर.सी. मजूमदार 'एंशिएन्ट इण्डिया पृष्ठ 383।


इतिहासकारों ने ललितादित्य के साम्राज्य की सीमा पूर्व में तिब्बत से लेकर पश्चिम में ईरान और तुर्कीस्थान तक तथा उत्तर में मध्य एशिया से लेकर दक्षिण में उड़ीसा और द्वारिका के समुद्र तटों तक मानी है। इतने बड़े साम्राज्य पर निश्चय ही गर्व किया जा सकता है।देश में प्रचलित इतिहास में किसी भी मुस्लिम सुल्तान या बादशाह का इतना बड़ा साम्राज्य नही था कि वह ललितादित्य को पीछे छोड़ सके। ललितादित्य केवल सैन्य अभियानों में ही रूचि नही रखते थे, अपितु उनके शासन काल में अन्य क्षेत्रों में भी उन्नति हुई। इतिहासकार बामजई हमें बताते है-'ललितादित्य की सैनिक विजयों को उसके विभिन्न शासन कालीन वर्णन में महत्वपूर्ण स्थान मिला है। बाद के समय में भी उन्हें कश्मीरियों का नायक बनाया गया है। परंतु निर्माण व जनकल्याण के उसके महान कार्यों, शिक्षा के प्रति प्रेम, विद्वानों के संरक्षण और दयालु विजेता रूपी गुणों के कारण उनकी गणना कश्मीर के सबसे बड़े शासकों में होती है। ललितादित्य जैसे महान और पराक्रमी शासकों के कारण ही अरब वालों के आक्रमण रूके और देश में सदियों तक शांति व्यवस्था स्थापित रही। आप अनुमान करे कि जिस देश के शासकों का शासन ईरान और चीन तक स्थापित रहा हो, उस देश की सीमाओं पर भला कोई कैसे कुदृष्टि लगा सकता था?


 सिकंदर से भी महान थे। वस्तुत: सिकंदर में तो महानता का कोई गुण ही नही था क्योंकि वह एक उच्छ्रंखल पितृद्रोही और पितृहंता राजकुमार था, जिसका लक्ष्य विश्व में 'जंगल राज्य की स्थापना करना था? वह विश्व को अपनी तलवार के आतंक से विजय करने चला था और जहां जहां भी गया था, वहीं उसने जनसंहार का क्रूर खेल खेला था। परंतु हमारे दिग्विजयी शासकों पर कोई शत्रु लेखक भी यह आरोप नही लगा पाया है कि उसने अपनी दिग्विजयों के समय अमुक देश में अमुक प्रकार से क्रूर जनसंहार किया था।हमारे शासकों ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया और विजयी देश को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया। यही कारण है कि हमारे शासकों का जहां-जहां राज्य रहा वहां-वहां के प्राचीन अभिलेखों में या साहित्य में उनके प्रति घृणा का कोई भाव नही मिलता। जैसा कि मुस्लिम शासकों के प्रति प्रत्येक देश में सामान्यत: मिला करता है।


सम्राट ललितादित्य के विषय में तभी तो एच.गोएट्ज ने लिखा है-
#मार्तण्ड_मंदिर 
ने आगामी सदियों के लिए कश्मीरी हिंदू कला का एक आदर्श स्थापित कर दिया। इस प्रकार ललितादित्य को न केवल लघु स्थायी सम्राज्य का संस्थापक समझा जाना चाहिए, अपितु उन्हें कश्मीर हिंदू कला की छह शताब्दियों का भी संस्थापक माना जाना चाहिए।


|| जय भारत-वंदे मातरम् ||


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बताया कि कम उम्र के दंपतियों की शादी जल्दी हो जाती है और उन्हें परिवार नियोजन के बारे में ज्यादा नहीं मालूम होता है। इस वजह से सरकार इन कम उम्र के लोगों को समुदाय के अनुकूल विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा लक्षित कर रही है। बीएमजीएफ के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. देवेंद्र खंडैत ने कहा कि परिवार नियोजन विधि को समुदाय तक पहुंचाना अगला महत्वपूर्ण कदम है। परिवार नियोजन और बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भ निरोधक विधि को एक में शामिल करना राज्य की और हमारी साझा प्राथमिकता है। बीएमजीएफ के फेमिली प्लानिंग पॉलिसी की कंट्री लीड मेधा गांधी ने कहा मैं समुदाय के अनुकूल विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से कम उम्र के दंपतियों के लिए परिवार नियोजन में बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भनिरोधक विधि को प्राथमिकता देने में उत्तर प्रदेश में महान नेत़ृत्व को बधाई देती हूँ। पॉप कौंसिल के कंट्री डायरेक्टर डॉ. निरंजन सगुरती कहा कि आजकल जानकारी डिजिटल और सोशल मीडिया पर मिलती है पर लड़कों और लड़कियों के बीच में डिजिटल डिवाइड काफी बड़ा है। ममता एचआईएमसी के इग्ज़ेक्यटिव डायरेक्टर डॉ. सुनील मेहरा ने कहा कि फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को कम उम्र के और कम बच्चों वाले दंपतियों तक पहुँचने का अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है। इस वर्चुअल कार्यशाला का समापन परिवार नियोजन पर जागरूकता उत्पन्न करने और इसे उपलब्ध कराने, कोविड-19 के बीच में कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) में बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भनिरोधक विधियों पर फोकस करने, कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) के लिए परिवार नियोजन सेवाओं के प्रति सरकार की वचनबद्धता को सुदृढ़ करने और बच्चों के जन्म में अंतर रखने वाली गर्भनिरोधक विधियों का कवरेज करने वाले सूचकों को विकसित करते हुए गुणवत्ता नियंत्रण कार्यप्रणाली को बढ़ाने पर फोकस करने और इसके लिए बजटीय प्रावधान करने का आश्वासन देते हुए किया गया। इस वर्चुअल आयोजन के लिए सभी ने यूपीटीएसयू, सीफार और पीएसआई संस्था को धन्यवाद दिया। *कोविड-19 काल : परिवार नियोजन विधि को प्राथमिकता देना* एक आकलन के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चार महिलाओं और लड़कियों में से लगभग एक महिला या लड़की को बच्चे के जन्म में अंतर रखने की विधि की अपूर्ण आवश्यकता है। कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) की आधुनिक 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*उमरिया प्रधानाचार्य तीन दिनों में प्रस्तुत करें शैक्षिक अहर्ता प्रमाण पत्र: डीआईओएस* -जिला विद्यालय निरीक्षक के पत्र से मचा हड़कम्प, जबाब देना हुआ मुश्किल ◼️◼️◼️ धनघटा(सन्तकबीरनगर) वरिष्ठता को दरकिनार कर कनिष्ठ व्यक्ति को पदभार दिए जाने को लेकर उमरिया बाजार इंटर कालेज ,उमरिया बाजार में प्रधानाचार्य पद का मामला गहराता जा रहा है। जिला विद्यालय निरीक्षक गिरीश कुमार सिंह ने प्रधानाचार्य को नोटिस भेजकर तीन दिनों के अंदर प्रधानाध्यापक की अहर्ता से सम्बंधित समस्त शैक्षिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का फरमान जारी किया है, जिससे विद्यालय में हड़कंप मच गया है। बतातें चले कि विद्यालय में उमरिया बाजार इंटर कालेज में 31 मार्च 2020 को प्रधानाचार्य जय चन्द्र यादव के सेवानिवृत्त से रिक्त पद पर नियमानुसार विद्यालय के वरिष्ठ व अहर्ताधारी शिक्षक लाल चन्द्र यादव को तदर्थ प्रधानाचार्य का पदभार दिया जाना चाहिए था, किन्तु प्रबन्धक ने तथ्य गोपन व मनमानी करके कनिष्ठ शिक्षक राधेश्याम यादव को पदभार दे दिया, जिसको मान्यता देते हुए जिला विद्यालय निरीक्षक ने हस्ताक्षर भी प्रमाणित कर दिया। मामले की शिकायत छपरा निवासी सतेंद्र कुमार यादव ने जिला विद्यालय निरीक्षक से किया था। शिकायती पत्र में साक्ष्य के साथ अवगत कराया गया है कि प्रधानाचार्य स्नातक प्रथम वर्ष व बॉम्बे आर्ट का प्रशिक्षण संस्थागत छात्र के रूप में एक ही शैक्षिक सत्र वर्ष 1983 में हासिल किया है, जो विभागीय नियमों के विपरीत है। वे इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट के अनुसार प्रधानाचार्य पद की निर्धारित अहर्ता भी पूरी नही करते हैं, अर्थात बीएड प्रशिक्षित भी नही है। वे प्रबन्धक द्वारा जारी विद्यालय की जेष्ठता सूची, जिसे संयुक्त शिक्षा निदेशक ने भी प्रमाणिक माना है, के अनुसार भी वरिष्ठ नही है। शिक्षक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी व उमरिया इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य पारसनाथ यादव, जय चन्द्र यादव ने भी कहा है कि प्रधानाचार्य का पद वरिष्ठ व योग्य शिक्षक को दिया जाना चाहिए, जिला विद्यालय निरीक्षक का निर्णय स्वागत योग्य हैं। *किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय नही होने देंगे: संजय द्विवेदी* ◾◾◾ सन्तकबीरनगर। प्रकरण के वावत पूछने पर उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के मण्डलीय मंत्री संजय द्विवेदी ने कहा कि नियमानुसार वरिष्ठ व अहर्ताधारी शिक्षक को ही प्रधानाचार्य का पदभार दिया जाना चाहिए था, किन्तु ऐसा किया नही गया। हम जनपद में किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय नही होने देंगे। प्रधानाचार्य का पदभार उसी को मिलेगा, जिसका हक होगा।
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