लाकडाउन # नशे को बॉय-बॉय ..कहने का सही वक्त # *दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाएँ, नशे से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं*#: डॉ. एसडी ओझा-जिला क्षय रोग अधिकारी

नशे को बॉय-बॉय ..कहने का सही वक्त


*दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाएँ, नशे से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं*



- लाक डाउन के दौरान बीड़ी-सिगरेट का एक कश भी न लेने वाले पा सकते हैं मुक्ति


- छुटकारा दिलाने में मदद कर सकता है प्राणायाम और ध्यान : डॉ. एसडी ओझा



*संतकबीरनगर , 28 अप्रैल-2020 ।*


कोरोना का यह दौर नशे की लत से हमेशा के लिए छुटकारा दिलाने में बहुत ही मददगार साबित हो सकता है । पिछले एक महीने से चल रहे लाक डाउन के दौरान घर के अंदर परिवार के साथ रहने के कारण या आसानी से उपलब्धता न होने के चलते बीड़ी-सिगरेट का एक कश भी न लेने वाले दृढ़ इच्छा शक्ति लाकर अब हमेशा-हमेशा के लिए इससे छुटकारा पा सकते हैं । शराब, गांजा, भांग व अन्य नशे से भी छुटकारा मिल सकता है ।



जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ एस डी ओझा का कहना है कि नशे से छुटकारा पाने का यह एकदम सही समय है । इससे पूरी तरह से छुटकारा दिलाने में प्राणायाम और ध्यान भी बहुत ही सहायक साबित हो सकता है । धूम्रपान अगर कुछ समय तक किसी भी कारण से छूट जाता है तो लोग अपने में संयम लाकर इससे हमेशा के लिए मुक्ति पा सकते हैं । इससे जहाँ जीवन में खुशहाली आ सकती है वहीँ शरीर भी निरोगी बन सकता है । धूम्रपान के साथ ही लोग करीब 40 तरह के कैंसर को न्योता दे देते हैं , इसलिए इससे छुटकारा पाने में ही खुद के साथ ही समाज की भी भलाई है । स्मोकिंग के बाद करीब 70 फीसद जो धुआं बाहर छोड़ते हैं वह उन सभी को प्रभावित करता है, जो उसके संपर्क में आते हैं । इस समय देश में करीब 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और उनमें से कुछ फीसद भी नशे को छोड़ देते हैं तब भी समाज का बहुत भला होगा क्योंकि धूम्रपान करने वाले से ज्यादा नुकसान उसके धुंएँ की चपेट में आने वालों का होता है । इस बीच बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक लगी है, इसके चलते आसानी से इसकी उपलब्धता भी ख़त्म हो गयी है ।  इसके अलावा खुले में थूकने पर भी मनाही है, इस भय से भी लोग अब नशे से तौबा करने में ही अपनी भलाई समझेंगे ।



*परिवार का सहयोग भी है जरूरी*
यदि कोई व्यक्ति एक से छह महीने तक नशा न करे तो दृढ़ इच्छा शक्ति और परिवार के सहयोग से सदा के लिए नशे से छुटकारा पा सकता है । अपने में दृढ़ इच्छा शक्ति लाएं और तय कर लें कि अब बिना नशे के भी वह सामान्य तरीके से जिदगी जी सकते हैं । जब कभी नशे की लत महसूस हो तो अपनों के बीच बैठ जाइए और उनके साथ समय व्यतीत करें या किसी ऐसे मनपसंद काम में मन लगायें ताकि नशे की लत को भूल जाएँ । यही छोटी-छोटी तरकीब आजमा कर बेहतर जिन्दगी की तरफ बढ़ चलेंगे ।



*फोर डी फैक्टर सबसे अधिक कारगर*


नशे से छुटकारा दिलाने में 4डी फैक्टर यानि डीप ब्रीथिंग (गहरी सांस लेना), डिनाय (मना करना), डिले (देर करना) और ड्रिंक मोर वाटर (ज्यादा पानी पीना) बहुत ही कारगर साबित हो सकता है। जब कभी नशे की लत महसूस हो गहरी सांस लें और दूसरे कामों में मन लगायें, कोई अगर नशे के लिए आफर भी करे तो मना करने की आदत डालें, नशे की लत महसूस हो तो अन्य कार्यों को तरजीह देकर नशे को टालें और खूब पानी पियें ताकि पेट भरा हुआ महसूस हो ताकि नशा की इच्छा ही न हो ।


*योगा और ध्यान अपनाएँ-नशे से छुटकारा पाएं*
प्राणायाम, अनुलोम -विलोम, कपालभाति, भ्रामरी योग और ध्यान भी नशे से मुक्ति दिलाने में बहुत ही सहायक हैं । जो व्यक्ति नियमित प्राणायाम करता है, उस व्यक्ति के शरीर का सिस्टम इस तरह का हो जाता है कि वह नशीली चीजों के सेवन से अपने आप दूर हो जाता है । इससे खून भी साफ़ होता है और यह एक माह में ही असर दिखाना शुरू कर देता है ।


*अब कभी नशे के चक्कर में नहीं पडूंगा*
नशे की लत के शिकार कुछ लोगों ने बातचीत में माना कि कई बार मन में आता था कि नशा छोड़ दूँ लेकिन घर से निकलता था और रास्ते में दुकान दिखने के बाद बरबस खिंचा चला जाता था, कभी-कभी छोड़ने का मन बनाया तो दोस्तों के दबाव में नशा कर लेता था किन्तु इधर डेढ़ महीने से बड़ी मुश्किल से सब कुछ छूटा हुआ है क्योंकि अब घर से न तो बाहर निकलना हो रहा है, दुकानें भी बंद हैं और दोस्तों से भी मिलना-जुलना बंद है । नशे के बिना शुरुआत में कुछ दिक्कत जरूर महसूस हुई लेकिन अब बड़ा सुकून महसूस हो रहा है । अब आगे कभी भी नशे के चक्कर में नहीं पडूंगा ।


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अधिकार भी सुनिश्चित किया है जो कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान इस राज्य में वापस लौटकर आए हैं। फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता ग्रामीणों के लिए अल्पकालीन गर्भनिरोधक विधियों के संबंध में परिवार नियोजन सेवाएं स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं। वहीं आईएएस अधिकारी आलोक कुमार ने कहा कि हमें कोविड-19 की वजह से परिवार नियोजन के फायदों से वंचित नहीं होना चाहिए। बच्चों के जन्म में अंतर रखने की अस्थायी गर्भनिरोधक विधियों पर ध्यान देते हुए सभी प्रणालियों को फिर से सक्रिय करना है। इस वर्चुअल आयोजन को संबोधित करती हुई एनएचएम एमडी अपर्णा उपाध्याय ने बताया कि परिवार नियोजन को मिशन मोड पर लाने के बारे में समझाया। उन्होने बताया कि परिवार नियोजन को मिशन मोड पर लाने के बाद ऊपर से नीचे तक सब मिलकर इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाएंगे। उन्होने बताया कि हमारी एमसीपीआर दर आदर्श रूप से 52% होनी चाहिए। यह लंबे समय से 31% ही है। हमें इसे मिशन मोड में बढ़ाना चाहिए। कुछ जिलों में यह दर ज्यादा है और कुछ जिलों में यह कम है। वहीं डॉ. राकेश दुबे, महानिदेशक, परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि कम उम्र के दंपतियों की शादी जल्दी हो जाती है और उन्हें परिवार नियोजन के बारे में ज्यादा नहीं मालूम होता है। इस वजह से सरकार इन कम उम्र के लोगों को समुदाय के अनुकूल विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा लक्षित कर रही है। बीएमजीएफ के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. देवेंद्र खंडैत ने कहा कि परिवार नियोजन विधि को समुदाय तक पहुंचाना अगला महत्वपूर्ण कदम है। परिवार नियोजन और बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भ निरोधक विधि को एक में शामिल करना राज्य की और हमारी साझा प्राथमिकता है। बीएमजीएफ के फेमिली प्लानिंग पॉलिसी की कंट्री लीड मेधा गांधी ने कहा मैं समुदाय के अनुकूल विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से कम उम्र के दंपतियों के लिए परिवार नियोजन में बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भनिरोधक विधि को प्राथमिकता देने में उत्तर प्रदेश में महान नेत़ृत्व को बधाई देती हूँ। पॉप कौंसिल के कंट्री डायरेक्टर डॉ. निरंजन सगुरती कहा कि आजकल जानकारी डिजिटल और सोशल मीडिया पर मिलती है पर लड़कों और लड़कियों के बीच में डिजिटल डिवाइड काफी बड़ा है। ममता एचआईएमसी के इग्ज़ेक्यटिव डायरेक्टर डॉ. सुनील मेहरा ने कहा कि फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को कम उम्र के और कम बच्चों वाले दंपतियों तक पहुँचने का अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है। इस वर्चुअल कार्यशाला का समापन परिवार नियोजन पर जागरूकता उत्पन्न करने और इसे उपलब्ध कराने, कोविड-19 के बीच में कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) में बच्चों के जन्म में अंतर रखने की गर्भनिरोधक विधियों पर फोकस करने, कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) के लिए परिवार नियोजन सेवाओं के प्रति सरकार की वचनबद्धता को सुदृढ़ करने और बच्चों के जन्म में अंतर रखने वाली गर्भनिरोधक विधियों का कवरेज करने वाले सूचकों को विकसित करते हुए गुणवत्ता नियंत्रण कार्यप्रणाली को बढ़ाने पर फोकस करने और इसके लिए बजटीय प्रावधान करने का आश्वासन देते हुए किया गया। इस वर्चुअल आयोजन के लिए सभी ने यूपीटीएसयू, सीफार और पीएसआई संस्था को धन्यवाद दिया। *कोविड-19 काल : परिवार नियोजन विधि को प्राथमिकता देना* एक आकलन के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चार महिलाओं और लड़कियों में से लगभग एक महिला या लड़की को बच्चे के जन्म में अंतर रखने की विधि की अपूर्ण आवश्यकता है। कम उम्र के और कम बच्चे वाले दंपतियों (YLPS) की आधुनिक 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