#बुद्ध_की_एक_भिक्षुणी_शिष्या_थी । #उनका_नाम_था_पटाचारा
त्रिपिटक ग्रंथ में उनकी कथा आती है । पटाचारा कुँआरी थी किसी युवान से उसका मन लग गया माँ-बाप के न चाहने पर भी उन्होंने उसके साथ शादी कर ली । श्रावस्ती नगरी से बहुत दूर देश में वह अपने पति के साथ रहने लगी ।
कालचक्र घुमता गया वह दो बच्चों की माता हुई काफी वर्ष गुजरने पर पटाचारा के मन में हुआ कि कुछ भी हो, आखिर माँ-बाप बूढे हो गये होंगे, अब मैं अपने परिवार के जनों से मिलूँ । उन माँ-बाप को रिझा लूँ… मना लूँ ।
पटाचारा अपने पति और दो बेटों के साथ चली श्रावस्ती नगरी की ओर आज से 2500 साल पहले की बात है गाडी मोटरों की सुविधा न थी लोग पैदल चलते थे । यात्रा करते करते ये लोग घने जंगल से गुजर रहे थे रात्रि में पति ने शयन किया और साँप ने उसे काटा पति मर गया । पटाचारा के सिर परमानो एक दुःख का पहाड गिर पडा ।
इतना ही नहीं, रात्रि को तो पति की मृत्यु देख रही है और प्रभात में पुत्र को किसी हिंसक प्राणी ने झपट लिया वह मौत के घाट उतर गया अब वह एकलौते बेटे को देख कर मुश्किल से संभल रही है प्यास के मारे दूसरा बेटा पानी खोजने गया वह झाड़ियों में उलझ गया और खप गया
अब अकेली नारी पटाचारा अपने को जैसे तैसे संभालती हुई, रास्ता काटती हुई, कंकडों पत्थरों पर पैर जमाती हुई, दिल को थामती हुई, मन को समझाती हुई मां_बाप के दीदार के लिए भागी जा रही है वह अबला श्रावस्ती नगरी में पहुँचती है तो खबर सुनती है कि जोरों की आँधी चली उसमें उसका मकान गिर गया और बूढे माँ-बाप उसके नीचे दबकर मर गये । पटाचारा के पैरों तले से मानो धरती खिसक रही है
है तो बडी दुःखद घटना मगर ईश्वर न जाने इस दुःख के पीछे कितना सुख देना चाहता है यह पटाचारा को पता न था ।
संसार का मोह छुडाकर शाश्वत की ओर ले जाने वाली ईश्वर-कृपा न जाने किस व्यक्ति को किस ढंग की व्यवस्था करके उसे उन्नत करना चाहती है ।
पटाचारा के मन में हुआ कि 'आखिर यह क्या ?
जिस पति के लिये माँ-बाप छोडे उस पति को साँप ने डँस मारा वह चल बसा बेटों को सम्भाला, पाला-पोसा, बडे होंगे तो सुख देंगे यह अरमान किये एक बेटे को हिंसक पशु उठाकर ले गया दूसरा बेटा गायब हो गया इतना सब दुःख सहते सहते माँ-बाप के लिए आयी, वहाँ हवा के झोंके ने मकान गिरा दिया और वे माँ-बाप दब मरे क्या यही है जीवन ?
क्या यही है हमारे मानव जन्म की उपलब्धि ?
पटाचारा की अशांति और मीमांसा दोनों शुरू हुई वह बुद्ध के पास पहुँची पटाचारा से बुद्ध ने कहा
पटाचारा ! जो कुछ होता है, जीव की उन्नति के लिए, विकास के लिए होता है । तेरे दो पुत्र इस जन्म में तेरे पुत्र थे परंतु न जाने कितनी बार और कितनों के पुत्र हुये और अभी न जाने वे किसकी कोख में होंगे तुझे क्या पता ?
तेरा पति इस जन्म में तेरा पति था परंतु करोडों बार न जाने कितनों का पति बना होगा ?
पटाचारा ! तू इस जन्म में इस माँ-बाप की बेटी थी, परंतु अगले जन्म के तेरे कौन माँ-बाप हुये होंगे ?
कितने माँ-बाप बदल गये होंगे यह तुझे पता नहीं शायद वह पता दिलाने के लिए परमात्मा ने यह व्यवस्था की हो ।
जगत की नश्वरता समझाते हुये बुद्ध ने पटाचारा को उपदेश दिया पटाचारा ऐसी भिक्षुणी बनी कि उसने एक बार महिलाओं के बीच प्रवचन किया और उसी एक प्रवचन से प्रभावित होकर पाँच सौ महिलायें साध्वी हो गयीं कहाँ तो जीवन की इतनी भीषण दुःखद अवस्था और कहाँ बुद्ध का मिलना और वह ऐसी भिक्षुणी हो गयी कि पाँच सौ महिलायें एक साथ भिक्षुणी बन पडी अभी सत्संग में उनकी चर्चा होती है ।
हम समीक्षा करेंगे तो पता चलेगा कि हर दुःख के पीछे कोई नया सुख छिपा है और सुख के पीछे दुःख छिपा है हम इतने अनजान हैं कि दुःख के भय से दुःखी होते रहते हैं और सुख में लेपायमान होते रहते हैं । सुख और दुःख की अगर ठीक से समीक्षा करेंगे तो ये सुख और दुःख दोनों हमें जगाने का काम करेंगे !!